
चूडाकरण का अभिप्राय और उसका काल {समय}–
चूडा क्रियतू अस्मिन’— वह संस्कार जिसमें बालक को शिखा धारण करायी जाय, इसको मुंडन-संस्कार भी कहते हैं । यह संस्कार बल आयु एवं तेज की वृद्धि के लिए किया जाने वाला संस्कार है । मनु जी ने इस संस्कार के विषय में कहा है की जन्म से प्रथम या तृतीय वर्ष में बालक का चूडाकर्म करना चाहिए—
महर्षि पास्करजी का भी कहना है— कि बालक के जन्म होने के बाद पहले अथवा तीसरे वर्ष में चूडाकर्म संस्कार करें ।
{पा०गृ०सू०२।१।१-२}
।। संस्कार की उपयोगिता और वैज्ञानिकता ।।
चूडाकरण संस्कार में मुख्य रूप से गर्भकालीन केशों का कर्तन करके शिखा रखी जाती है
इसके संबंध में महर्षियों ने बहुत बातें बताई हैं—
महर्षि कात्यायन कहते हैं– द्विजको सदैव यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए और सदा शिखा में ग्रंथ लगाने लगाए रहनी चाहिए । शिखा तथा यज्ञोपवीतके बिना जो कर्म करता है वह निष्फल होता है । स्नान, दान, जप, होम, संध्या, देवपूजन आदि समस्त नित्य नैमित्तिक कर्मों में शिखामें ग्रंथि लगी होनी चाहिए—
स्नाने दाने जपे होमै सन्ध्यायां देवतार्चने ।
शिखाग्रन्थिं सदा कुर्यादित्येतन्मनुरब्रबीत् ।।
यदि रोग या वृद्धावस्था के कारण शिखास्थान के बाल गिर गए हों तो उस स्थान पर– तिल, कुशपत्र, दूर्वा या चावल रखने का विधान है ।
शिखा तेज को बढ़ाती है दीर्घायु तथा बलवर्धक भी है
इसलिए जप आदि एवं पाठ आदि के पूर्व शिखा का स्पर्श करके न्यास किया जाता है । शिखा हमारे ज्ञान शक्ति को बढ़ाती है और हमें चैतन्यता प्रदान करती है ।
शिखा का स्थान ही सहस्रार चक्र का केंद्र है । शिखा के नीचे बुद्धि का चक्र है और इसीके पास ब्रह्मरंध्र है । बुद्धिचक्र एवं ब्रह्मरंध्र के ऊपर सहस्त्रदलकमलमें अमृतरूपी ब्रह्म का अधिष्ठान है ।
जब हम चिंतन मनन का आदि करते हैं या ध्यान करते हैं, तबइस ध्यानसे उत्पन्न अमृततत्व सहस्त्रदलकर्णिकिमें प्रविष्ट होकर सिर से बाहर निकलनेका प्रयत्न करता है । इस समय यदि शिखा में ग्रंथि लगीहो तो वह अमृततत्व नहीं निकलने पाता, अतः शिखा का स्थान बहुत महत्व है ।
इस ग्रंथि से शरीर में एक विशेष प्रकार का रस संचार होता है जो शरीर को हृष्ट-पुष्ट तथा मस्तिष्कको विकसित करता है, अतः इस ग्रंथि की सुरक्षा के लिए शिखा स्थानपर बाल बढ़ाना आवश्यक है ।
लंबी और मोटी सीखा मर्मस्थल की रक्षा करती है ।
सिरकी उष्णता को कम करने के लिए मुंडन के बाद दही मक्खन आदि लगाया जाता है, केशकर्तन पौष्टिक आयुष्यवर्धक एवं मलरूप पापका निवारक माना गया है । इसी कारण प्रायः पहले और तीसरे वर्ष में मुंडन संस्कार किया जाता है । मंत्रसहित चूडाकरण से आयुवृद्धि और जठराग्निसंदीपन होता है; बल, बुद्धि तथा सौभाग्य बाल बढ़ता है । चूडाकरण हिन्दुत्व को बाह्य रूपमें प्रकट करने वाला विशेष संस्कार है, जैसे राजाका चिन्ह ध्वज है, वैसे हिंदुत्व का चिन्ह {चोटी} शिखा है ।
चरक संहितामें बताया गया कि केश श्मश्रु और नख आदिके काटनेसे शरीर पुष्ट होता है, शक्तिमें वृद्धि होती है, आयु दीर्घ होती है पाप का अपनोधन होता है और सौंदर्य की वृद्धि होती है—
पौष्टिकं वृष्यमायुष्यं शुचि रूपविराजनम् ।
केशश्मश्रुनखादीनां कल्पनं सम्प्रसाधनम् ।।
साभार— गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल नवोदय नगर, हरिद्वार