Uncategorized
Trending

“कौतुक”

(स्वरचित कविता)

कौतुक का मधुर किनारा,
मन को लगे स्वप्न सा प्यारा।
चंचल रेखा मन में खींचे,
हास-परिहास हृदय में सींचे।।

नयनों में चमके चितवन,
बोलों में हो शरारत बन।
हर गति में नव रंग झलके,
मन वीणा पर मस्ती छलके।।

नाटकीय हों भाव निराले,
रूप बदलते क्षण-क्षण भाले।
संकोच हटे, हँसी गूंजे,
गीतों में चंचल मन झूले।।

बालसुलभ कौतुक यह प्यारा,
तन-मन बन दे दीप उजियारा।
हर्ष-विलास की हो परिभाषा,
जीवन को दे नई अभिलाषा।।

कौतुक रस का रंग निराला,
मन में बहे सुधा की धारा।
बिन वासनाओं के यह मेला,
जाग्रत चेतनता का अलबेला।।

योगेश गहतोड़ी (ज्योतिषाचार्य)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *