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छत्रपति वीर शिवाजी

थे महान योद्धा अरु शासक, स्वर्णाक्षर में नाम मढा।
इनकी गौरव गाथा अद्भुत, हीरा इनके मुकुट जड़ा।।
शौर्य-पराक्रम, कुशल नीति से, मुगलों के छक्के छुड़ा दिए।
बचपन से ही निडर, साहसी रहे, सभी को दिखा दिए।।

अपनी गौरव, यश गाथा को, स्वयं इन्होंने दर्ज किया।
शिवनेरी के दुर्ग में जन्मा, लाल अनौखा फर्ज लिया।।
माता जीजाबाई की शिक्षा, रग-रग में थे भरे हुए।
देशभक्ति व कुशल प्रशासक, बुद्धिमान थे पगे हुए।।

दृढनिश्चय के प्रखर धनी थे, कूटनीति, अदम्य साहस।
कभी हारने वाले न थे, गर्व करें, गायें इनका यश।।
हिन्दू हृदय सम्राट, मराठा शासक थे वे छत्रपति,
नाम छतरपुर जिला उन्हीं से, बना थे नायक सेनापति।।

युद्ध कला में नहीं था कोई, उनके जैसा सानी था।
बड़ी-बड़ी सेनाओं को दी धूल चटा अति मानी था।।
उनकी चाल, चतुरता अद्भुत, थे दयालु शासक वह ही।
जब तक रहे मराठों का भगवा ध्वज लहराया यों ही।।

रचना- जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

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