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रक्षाबंधन का स्नेह-बंधन


(रक्षा का अदृश्य धागा)

राखी के इस प्यारे दिन प्यार की रोशनी फैलती है,
भाई-बहन के दिलों में खुशियों की माला सजती है।
मेरी दो प्यारी बहनें बहुत जल्दी चली गईं हैं,
पर उनकी यादें आज भी मन को छू जाती हैं।

बहिनों के साथ बिताये वह दिन, जब याद आते हैं,
दोनों बहिनों का वह प्यार आज भी सुकून देता है।
वे मेरे साथ नहीं हैं, पर उनकी ममता आज भी है,
हर दुख-सुख में यादें मेरे दिल को सहारा देती हैं।

मेरे जीवन पथ में कुछ बहिनों का साथ मैंने पाया,
दुर्भाग्य मेरा किसी ने रक्षा का वचन नहीं निभाया।
पर कठिन घड़ी में,मेरी बहनें मेरा हाथ थाम लेते थे,
उनके मीठे शब्दों से, मेरे हर कष्ट दूर हो जाते थे।

आज प्रीति बहना के शब्द “मैं हूँ ना” आश बने,
“आप मेरे भाई हैं”, उनके ये भाव अमर बनें।
“मैं आपकी बहनों की जगह न ले पाऊँ, ये मानती हूँ,
पर एक बहन का कर्तव्य निभाऊँगी, ये जानती हूँ।”

रिश्तों का बंधन केवल रक्त-संबंध से नहीं बनता है,
स्नेह की डोर से जुड़ा, हृदय ही सच में जुड़ता है।
राखी का धागा कलाई पर ही नहीं, हृदय में बंधता है,
कठिन राह में आशीष-सा विश्वास सदा संवरता है।

बहना चाहे जन्म से हो या राह में मिली हो बाद,
दुआ वही देती है, जो रखे प्रेम में विश्वास अनाद।
सुख-दुख में जो साया बनकर चुपके साथ निभाए,
भाई के आँसुओं को आँचल में मोती-सा सजाए।

दूरी की सीमाएँ चाहे, कितनी भी आकर रोक लगाएँ,
मन की डोर हर सरहद को, पार कर अपनापन लाए।
कलाई पर आज भी भले, राखी का धागा न सजा है,
प्रीति बहना का स्नेह है, जो रक्षा धागा पावन बना है।

भले ही आज मेरी कलाई पर बहनों का हाथ नहीं है,
पर दुआओं का आशीष और अपनापन तो साथ है।
प्रीति बहना, तुम्हारे तीन शब्दों ने जो दीप जलाया,
उससे रक्षाबंधन का, असली अर्थ मैं आज जान पाया।

योगेश गहतोड़ी

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