
दिनांक : 10 अगस्त , 2025
दिवा : रविवार
जुड़ा हुआ पाणि हो ,
सुमधुर ये वाणी हो ,
पावन सा विचार हो ,
सुंदर सा आचार हो ,
जीवन न लाचार हो ।
उभरा हुआ प्यार हो ,
बंधुत्व का संचार हो ,
अश्लील न उद्गार हो ,
ईर्ष्या का न प्रचार हो ,
जीवन ही हरिद्वार हो ।
जीवन में न तकरार हो ,
जीवन कभी न भार हो ,
सुंदर सबसे व्यवहार हो ,
मन में न व्यभिचार हो ,
ईमान ही जीवन सार हो ।
साफ सुथरा घर द्वार हो ,
न कटुता का पैनी धार हो ,
दो के बीच न दरार हो ,
आदर स्नेह नारी नार हो ,
हॅंसता खेलता संसार हो ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।