
कौन हो तुम
मुझे आजकल डराता है
एक अदृश्य साया
जो आँखों से ओझल है,
पर मेरे हर सवाल के पीछे खड़ा है,
मेरी परछाईं से भी ज़्यादा क़रीब।
कौन हो तुम?
सच, झूठ, सही, ग़लत
या फिर कोई तीसरा,
जो इनके बीच चुपचाप
मेरा चेहरा पढ़ रहा है?
प्यार, इश्क़, मोहब्बत
या फिर कोई धोखा,
जो होंठों पर मुस्कान रखकर
दिल में अंधेरा बोता है?
राह, राहगीर, मंज़िल
या फिर कोई मुसाफ़िर,
जो मेरी ही परछाईं को
मेरे आगे-आगे चलाता है?
रात, दिन, सुबह, शाम
या फिर कोई अंधकार,
जो उजाले के बीच भी
मेरे पैरों को जकड़े रहता है?
रहनुमा, रहबर, पथ-प्रदर्शक
या फिर कोई मार्गदर्शक,
जो रास्ता दिखाकर
मुझे भटका भी देता है?
कौन हो तुम?
आशिक़, प्रेमी, अनुरागी
या फिर कोई मुहिब,
जो नाम तो प्रेम का ले
पर साया-सा अदृश्य रहे?
रंग, रूप, धूप, छाँव
या फिर कोई बहरूपिया,
जो हर रूप में ढलकर
अपनी असली शक्ल छुपा लेता है?
काल, अवधि, दौर, युग, पल, क्षण
या फिर कोई समयसीमा,
जो टिक-टिक करती घड़ी की तरह
मेरे भीतर की निःशब्दता नाप रही है?
कौन हो तुम?
वो अदृश्य साया,
जो मेरे हर सवाल में छिपा है,
और हर जवाब को
अपने अंदर निगल लेता है…
आर एस लॉस्टम