
छोटी-सी मुस्कान…
तू हवा का झोंका बन
छू के बदन चला गया।
मैं टकटकी लगाए
बस देखता ही रह गया।
तू सब उड़ा ले गया
मेरी यादें, कुछ वादे,
कसमें, रस्में,
उलझे-सुलझे अजनबी जज़्बात।
फुसफुसाते, गुनगुनाते
कुछ मीठे-मीठे ख़्वाब,
कुछ अनकहे एहसास
सब समेट ले गया तू अपने साथ।
मुझे…
बस मेरी साँसें छोड़ दीं,
यौवन, जवानी, इश्क,
प्रेम, लगाव, मोहब्बत
कुछ भी तो नहीं बचा!
कम-से-कम मेरा अस्तित्व
छोड़ जाते,
या कोई बेपरवाह निशानी
सावन का महीना,
रिमझिम बारिश की फुहार,
या यूँ ही कही गई
कोई भूली-बिछड़ी कहानी,
या फिर वो
छोटी-सी मुस्कान।
थोड़ा-सा ही छोड़ जाते
मेरी आँखों में कुछ आस…
कुछ तो छोड़ जाते तू,
चाहे झूठी ही सही
मिलने की कोई आस।
आर एस लॉस्टम