
हम भारत के वीर सिपाही, आगे कदम बढ़ायेंगे।
हों कितनी ही मुश्किल मग में, कभी नहीं घबरायेंगे।।
दुश्मन से हम नहीं डरेंगे, बोलें भारत माँ की जय।
जयहिंद का नारा गूँजेगा, सबको यही बतायेंगे।।
देश-धर्म है सबसे ऊँचा, देश-प्रेम मेरा सच्चा।
बलिदानों को नमन हमारा, हम कदम मिला चलते अच्छा।।
भारत का सौन्दर्य अनूठा, लोग अनूठे हैं इसके।
धर्म विविध पर सभी अनूठे, हैं इसके भी व उसके।।
कौन जगत में भारत सा है, कौन देश जो न माने।
राम-कृष्ण की धरती प्यारी, जो कबीर को सनमाने।।
नानक व रैदास हुए हैं, वीर जिन्होंने पाले हैं।
महावीर ने देकर शिक्षा, हटा दिए सब जाले हैं।।
वीर हमारे सच्चे योद्धा, भारत की ये शान रहे।
धर्म-कर्म व प्रेम हृदय में, अनुशासन को लिए रहे।।
मातृभूमि पर किये निछावर प्राण देश-हित वीरों ने।
हैं आजाद तभी तो हम सब, वीर हाथ कृपान गहे।।
रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)