
चेहरे पर धूल जमी थी,
और मैं उम्र भर आईना चमकाता रहा।
अपने अंदर की बुराई से लड़ नहीं सका,
पर कपड़ा हमेशा सफ़ेद पहनता रहा।
ज़िंदगी के कुछ असूल थे मेरे—
झूठ को सच बताता रहा।
बहुत कुछ पा सकता था,
पर औरों को नीचा दिखाने में ही लगा रहा।
देश-विदेश, परदेस घूमता रहा,
खुद को ही अपने देश का रहनुमा बताता रहा।
पर क्या मालूम था मुझे—
अपनी ही नज़रों में गिरता जा रहा हूँ।
धूल मेरे चेहरे पर थी,
और मैं पूरे जीवन आईना ही रगड़ता रहा।
आर एस लॉस्टम