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मेरे देश की माटी

मेरे देश की माटी,प्यार बांटती ।।
गंगा यमुना सा,दुलार बांचती ।।

उगा कर वतन परस्ती निज मे,भूमि का उपकार भारती,,
निखरे मानवता सौहार्द जहा ,ऐसा उत्कृष्ट व्यवहार मांगती ।।

गौरवशाली इतिहास की धारिता,वीर शिवा सुभाष पालती।।
भावना निसंदेह वात्सल्य सी,भूमि का श्रृंगार भारती ।।

बो कर भगत सुखदेव सावरकर, बीज उदार ललकार बांचती ,
शौर्य साहस अदम्य वीरता, सद्गुण वीर धीर धारती ।।

तुम मुझे दो खूं,मैं आजादी दूँगा, ऐसे नारो की अज़ान भारती,
शान मान परिधान सिफ्त देह, रक्त की चंदन धार भारती।।

वसन को तिरंगा, शान है जिसकी,ऐसा मेरा मान भारती
लिपट आता,सर्वस्व त्याग देह , ऐसा धीर जवान पालती ।।

मेरे देश की माटी सिंह केसरिया, शौर्य साहस के लाल पालती,
डरते दहाड़ से जिसकी दुश्मन, ललकार से जिसकी रूह कांपती ।।

मेरे देश की माटी केसर चंदन, सरस सरल सा प्यार भारती,
मस्तक जिसका शीर्ष हिमालय, सागर पांव हिंद बुहारती।।

गंगा कृष्णा,ब्रह्मपुत्र भी,कावेरी,सिंधु यमुना तारती,
कराकर दुग्ध पान वक्ष का,खेत खलिहान आप संवारती।।

पर्वत पठार मैदान संजीले, मुख की वन मुस्कान नाचती,
ऐसी ऋतुओं की दुल्हन यह,हर कण चीर श्रृंगार भालती।।

मेरे देश की माटी सौरव सुरभित,मकरंद ,
पुष्प सी,सरल आरती ,
इसकी गौरवमयी गाथा मे,राम बुद्ध, महावीर भारती।।

क्यू न लिपट मैं जाऊँ, तुझमे, बता न मेरी माँ भारती,
सुंगध तेरी मे मिलकर महकू, दे अवसर, सुरम्य भारती।।

तेरी रज मेरी हविष्य की धूनी, कर न ऐसा श्रृंगार, भारती,
माँ भारती, शान भारती, गौरवमय इक गान भारती।।


संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड

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