
चाहे तुम मुझको पहना दो,
गलबाही का हार!
चाहे पकड़ा दो हाथों में ,
ढाल और तलवार!!
मर मिट जाएंगे स्वदेश पर,
मान न जाने देंगे!
राष्ट्र हितैषी बनकर क्षण क्षण,
ध्वज झुकने ना देंगे!!
सेक्यूलर कहने वाले खुद ही ,
वंशवाद के पोषक हैं!
लोभ मोह मदिरा में जीते ये,
मेरे श्रम के शोषक हैं !!
ऐसे गद्दारों का हरदम,
करना है प्रतिकार!
यही हमारी राष्ट्र चेतना,
वसुंधरा से प्यार!!
भेदभाव के दलदल में,
इंसान न धंसने पाए!
छुआछूत के कोढ़ तपेदिक से
हम इन्हें बचाएं!!
भ्रम फैलाने वालों सुन लो ,
राष्ट्र हितेषी बानी!
गढ़ ना पाओगे स्वहित की ,
अपनी राम कहानी!!
आतंकी दहशतगर्दों का
करें सदा संहार!
यही हमारी राष्ट्र चेतना
वसुंधरा से प्यार!!
सर्वधर्म समभाव सहृदयता
भाईचारा गूंजे!
आतंकित विश्वास न हो
हम मिलें गले एक दूजे!!
सूत्र, धारा परिवार एक है
इस को सबल बनाएं!
मानवता की रक्षा में नित
“जिज्ञासु” जन छा जाएं!!
सब में हो सद्भाव बंधुता ,
यही अटल व्यवहार!
यही हमारी राष्ट्र चेतना
वसुंधरा से प्यार!!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”