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सैनिक (लघुकथा)


मां की नजरें फोन पर ही टिकी थी। अपने बेटे के फोन का इंतजार कर रही थी। अभिराज एकलौता बेटा बड़े ही लाड़-प्यार से पला,मां बाप की आंखों का तारा था”।बचपन से ही अभिराज सीआरपीएफ में जाने की बात किया करता था… देश की सेवा की बातें किया करता था…उसकी इसी जिद ने सेना में भेज दिया। अब मां का फोन ही एकमात्र सहारा था ….. जिससे हाल -चाल मिल जाया करता था…?”
मां इस बार की होली पर उसका इंतजार कर रही थी….बेटे की शादी की बात भी पक्की हो गई थी…बेटे के ससुराल वालों को कह रखा था कि अभिराज होली त्योहार की छुट्टियों में आयेगा …वे लोग भी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। “…मां ने सोचा -चलो लगे हाथ इसकी शादी भी कर देंगे..”
फोन की घंटी घर्र-घर्र भेजती है और मां झट से फोन लेती है ..”हेलो बेटा , कैसे हो..?
मैं ठीक हूं मां और पापा कैसे हैं..? इस बार होली की छुट्टियों में जरूर आऊंगा…मेरी छुट्टी की
अर्जी मंजूर हो गई है। ठीक है मां तुम अपना और पापा का ख्याल रखना…?हां बेटा तुम हमें लेकर परेशान मत हो…”
घर में होली की तैयारी जमकर चल रही थी… विभिन्न प्रकार के पकवान बन रहे थे…मां खुशी से अपने आप में नहीं समा रही थी..अपनी नौकरानी को कहती है…अरे जल्दी -जल्दी काम निपटा “आज मेरा बेटा आ रहा है…. ये आंखें उसे देखने को आतुर हैं….. तू समझती क्यों नहीं…।
” तभी अचानक से घर के बाहर सेना की गाड़ी पहुंचती है…. और देश के लिए शहीद तिरंगे में लिपटी लाश को उतारा जाता है।
मां ये सब देख पथरा जाती है… आंखों से आंसू भी नहीं निकल रहे थे जैसे आंसू आंखों में ही सूख गया हो… देखते ही देखते पडोसी की भीड़ लग जाती है” सभी मां को अपलक आंखों से देखते हैं…. मां उन लोगों से कहती है…”मैं क्यों रोऊं….मेरा बेटा देश का सच्चा वीर सैनिक था..अपनी बलिदानी देकर देश की गरिमा को बढ़ाया है….मेरा बेटा मेरा नहीं है ,वो आज भी मेरे
आस -पास है… मैं महसूस कर रही हूं…. ऐसे देशभक्त बेटा पर मैं बलि -बलि जाऊं….”

डॉ मीना कुमारी परिहार

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