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किस काम का


अब अफसोस कैसा,
गम किस बात का
जिंदगी में खाली हाथ,
उम्मीदों का संसार
किस काम का।।
गहराई में डूब कर भी हम,
इंसान न बन सके
पढ़ा लिखा टोटका
किस नाम का।।
अवसरों पे रोटी कभी
हमने भी सेकी थी
आज उठ रहा है धुआं
है आशु किस नाम का।।
बदनाम गलियों से
वास्ता रखने वाले,
तेरे लिए मंदिर का पता
किस काम का।।
देश की माटी रज से बढ़कर
हिंदुस्तान जब नाम मिला
मैं शहीद क्यों हुआ था
पूछता है हर साल
यह जश्न किस बात का।।।
..नीरज कुमार ‘नीर’
9589039327

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