
!! अंत्येष्टि संस्कार का सामान्य परिचय !!
जीव की सद्गति के उद्देश्य से मरणासन्न अवस्थामें किया जानेवाला दान आदि कृत्य तथा मृत्युके तत्काल बाद का दाहआदि कर्म और षट्पिंडदान— अंत्येष्टि संस्कार कहलाता है ।
अंत्येष्टि शब्द अन्त्य और इष्टि इन दो पदों के योग से बना है । अन्त्य का अर्थ है अंतिम और इष्टिका सामान्य अर्थ है यज्ञ । सामान्य रूप से मृत्यु के अनन्तर किया जानेवाला संस्कार अंत्येष्टि संस्कार कहलाता है ।
पहला संस्कार है— आधान अर्थात् गर्भाधान और अंतिम संस्कार है– अन्त्येष्टि । इसीको अन्त्यकर्म, और्ध्वदैहिक संस्कार, पितृमेध तथा पिण्डपितृयज्ञ भी कहा गया है । महर्षि याज्ञवल्क्य जी के अनुसार– द्विजोंके गर्भाधान से लेकर श्मशान तक के संस्कार मंत्रपूर्वक करने चाहिए—
ब्रह्मक्षत्रियविट्शूद्रा वर्णास्त्वाद्यास्त्रयो द्विजा: ।
निषेकाद्या: श्मशानान्तास्तेषां वै मंत्रतः क्रिया: ।।
{१।२।१०}
यह संस्कार भी शरीर के माध्यम से ही होता है । संस्कृत-अग्निसे शरीरके दाहसे उसके आत्मा की परलोक में सद्गति होती है ।
अंत्येष्टि संस्कार मुख्यतः दो रूपों में सम्पन्न होता है । पहला पक्ष मरणासन्न-अवस्था का है और दूसरा पक्ष मृत्युके अनन्तर अस्थिसंचयन तक किया जाने वाला कर्म है । जन्म की समाप्ति मरणमें होती है, इसलिए मृतकका संस्कार यथाविधि अवश्य करणीय है ।।
साभार— गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर हरिद्वार