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रास्ता और राहगीर

तू सीना ताने चलता है मुझ पर,
कभी सोचा—मुझे भी दर्द होता होगा।

माना, तू हाड़-मांस का बना,
और मैं मिट्टी, कंकड़, ईंट, पत्थर, रेत का।
पर कष्ट मुझे भी होता है,
जब तू मुझे तोड़ता है, कोड़ता है।

मुझे मत रौंद, मुझे मत कौध मत कूच
मैं सड़क हूँ, अगर तू आदमी है।

मैं धूल हूँ तो क्या,
उड़कर सीधे तेरे सिर पर बैठ जाता हूँ।
और चाहूँ तो,
तुझे भी धूल में मिला देता हूँ।

कभी हादसा बनकर,
कभी चेतावनी देकर
“रफ़्तार कम कर, सम्भलकर चल।”
पर तू कहाँ सुनता है,
क्योंकि तू… आदमी है।
आर एस लॉस्टम

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