
स्वतंत्रता का क्या मूल्य दिल से जाना
बडी मुश्किलों से हुआ सपना सुहाना
बलिदानियों के देश प्रेम को पहचाना
भरे है नयन आंसुओं से लिखा तराना
हृदय नम हुआ जब से इसको है जाना
हमारे लिए जुल्म सहन किया दीवाना
अधिकारों को तो तुमने बहुत है जाना
बलिदानियों को क्यों नही है पहचाना
भूला तो ना दोगे तुम वलिदान उनका
वतन पर लुटा दिया सर्वस्व तन मन का
उन्होंने कभी रंग से खेली थी जब होली
हमारे लिए खेलते रहे वे खून की होली
मिटाकर चले गये वे दुश्मनों की वेशर्मी
जिन्हें थी गद्दारी करने की गलत फहमी
अनगिनत लहू से भीगी भारत की माटी
हजारों दफन है जिन्हें जनता न जानती
मातृभूमि को सुरक्षित करने की खातिर
लडते रहे आखिर दम तक जो थे बहादुर
स्वतंत्रता अमूल्य निधि पायी संघर्ष कर
नजरे लगीं है सब की एकता हमारी पर
मुबारक हो तुमको यह दिवस है सुहाना
मगर याद रखना उन्हें कभी भूल न जाना
डाँ . कृष्ण कान्त भट्ट
एस वी पी सी बैंगलुरू कर्नाटक
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना