
मनुष्यका जीवन दीर्घायु एवं सुखमय हो इसके लिए भारतीय शास्त्रों में प्रत्येक वर्ष जन्मतिथिको वर्धापन-संस्कार संपन्न करने का विधान किया गया है ।
इसे जन्मोत्सवसंस्कार अब्दपूर्तिकृत्य, मार्कंडेय–पूजन तथा वर्षगाँठ आदि नामों से भी कहा गया है ।
प्रथम वर्ष व्यतीत होनेके उपरांत प्रत्येक वर्ष {जनमानसमें पड़नेवाली} जन्म तिथिको दीप प्रज्वलित कर जन्मोत्सव मनाया जाता है । शिशुका जन्मोत्सव उसके पिता प्रतिनिधि के रूप में करें और —
बड़े होने पर उसे स्वयं करना चाहिये । महिलायें भी इसी प्रकार अपना वर्धापन बना सकती हैं ।।
इस दिन सर्वप्रथम शरीरमें तिलका उबटन लगाकर तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये । उसके बाद नयावस्त्र धारणकर दीप प्रज्वलितकर–
कुलदेवता, जन्म-नक्षत्र, माता-पिता, दीर्घजीवी मार्कंडेय, सप्तचिरंजीवियों एवं षष्ठी देवी आदि का अक्षतपुंजों पर आवाहन करके उनकी पूजा होती है ।
और दीर्घायुष्य तथा कल्याण मंगल के लिए उनसे प्रार्थना कीजाती है ।
कर्मकी पूर्णतापर बालककी रक्षा केलिए प्रतिष्ठित रक्षापोटलिका अथवा रक्षासूत्र भी उसे बांधा जाता है ।
जन्मदिन पर माता-पिता वृद्धजनों एवं अपनी आयु से बड़े लोगों का अभिवादन करके उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है ।
वर्धापन-संस्कार के दिन निम्नलिखित नियमों का अनुपालन किया जाना चाहिये—
नाखून केशको नहीं कटवाना चाहिए, दाढ़ी नहीं बनानी चाहिए, स्त्रीसंसर्ग और अधिक भागदौड़ नहीं करनी चाहिए, व्यर्थ-कलह एवं हिंसा नहीं करनी चाहिए, गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिये, बड़ोंको प्रनाम करना चाहिये ।।
वर्तमानमें चल रही केक काटकर—
हैप्पी बर्थडे टू यू कहने की प्रणाली पाश्चात्य-अनुकरण का प्रभाव है यह विडम्बना ही है ।।
इससे सर्वप्रथा बचते हुये भारतीय सनातन अराधना पद्धतिका ही आश्रय ग्रहण करनी चाहिये ।।
परन्तु पूरी प्रक्रिया करने में जिन्हें असुविधा हो अथवा समर्थ ना हों,
उन्हें मंदिर में भगवद्’दर्शन दीप प्रज्वलन तथा सदाशिव एवं भगवान विष्णु आदि अपने इष्टदेव की यथासाध्य पूजा आराधना करते हुये भूदेव अर्थात, ब्राह्मणों तथा दरिद्रनारायण केलिए यथाशक्ति अन्नदानादि कृत्य संपन्न करना चाहिये ।
साथ ही बंधु-बांधओं एवं मित्रों साहित प्रसाद पाना चाहिये ।।
साभार– गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर हरिद्वार