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रफू नही होते

रफू नही होते जख़्म जो खरोंच से दिए जाते है,
नासूर बन जीते है,जो भीतर रहा करते है।।

लहजे, आवाज, ख़ामोशी सब ओढ़ रहते है,
इतने वसन जख़्मों के क्या फैशन किया करते है।।

खंजर घोप देते तो बहुत कही अच्छा था,
बिन घाव तड़पन वो,तिल तिल दिया करते है।।

आवाज उनकी ऊंची है,और जायज भी,कानूनन है,
पर कत्ल किए अरमानो की,न सजा दिया करते है।।

सरल नही सरल कही,जीना जिंदा मौत बन,
वो सिरफिरे ही होते है,जो कफन सिया करते है।।

होना जो वो चाहते है,हो ही न पाते है,
लगा कर नकाब मुँह पर,चेहरा लिए रहते है।।

खैर मना कि हांसिल है और फिर शिकार भी,पर अच्छा है,मुजरिम नही,जो लोग कहा करते है।।

संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड

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