
मन में संकोच है,वह उदास है।
वह शांति दूत,शुभ श्वेत कपोत
देखा क्या किसी ने?
पता नहीं किसके पास है??
बरसों पहले गया था
विश्व में शांति संदेश देने??
था तो वह छोटा,
क्या वह नाकाम हो लौटा??
संकोच के मारे न पूछा किसी से
पर मन का आइना टूटा।
शांतिपूर्ण देश में धार्मिक उन्माद का
ज्वालामुखी कैसे फूटा??
आज उसे कहां ढूंढा जाए??
आग बुझाने का कैसा
जतन किया जाए?
असह्य अशांति है चतुर्दिक,
क्या मेरा मन ही बन जाए ऋत्विक??
शांति ढूंढने क्या
अशांति का सहारा लिया जाए???
या मार संकोच के चुप रहा जाए??
सुलेखा चटर्जी