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अद्वैत – कविता

अद्वैत है वह ज्योति महान,
जहाँ न रहता कोई अज्ञान।
न कर्ता–भोगी, न कोई राग,
अद्वैत मिटा दे मन का भार।

अद्वैत है आत्मा का ज्ञान,
जहाँ न जग का झूठा गान।
रूप-अरूप का भेद न रहे,
अद्वैत में सब एक बने।

अद्वैत है ब्रह्म का सहारा,
जिससे चलता जग सारा।
ना भीतर–बाहर, ना दूर–पास,
मात्र अद्वैत है केवल प्रकाश।

अद्वैत में शून्य भी जाए,
पूर्ण सृष्टि उसमें समाए।
ना जन्म-मरण का कोई बंधन,
अद्वैत तोड़े सारे संबंधन।

अद्वैत सत्य महान कहलाए,
जहाँ “मैं–तू” भेद न पाए।
जो जन अनुभव से इसे जाने,
वही अद्वैत ब्रह्म को पहचानें।

अद्वैत है मौन का सहारा,
मन पाता शांति अपारा।
शब्द–शास्त्र सब मौन हुए,
तब अद्वैत में ब्रह्म मिले।

अद्वैत है जीवन की डोर,
जोड़े सबको बारम्बार।
ना साधक–साधन का भान,
अद्वैत ही है साक्षी पहचान।

अद्वैत में न पाप न पुण्य,
ना मोह–माया का कोई गुण।
सब खेल उसी की छाया,
जब अद्वैत जग में समाया।

अद्वैत है ध्यान का दीप,
जिसमें खोए मन और प्रीति।
द्वैत न रहे, न कोई भार,
अद्वैत बने जीवन आधार।

अद्वैत है अनंत प्रकाश,
भर दे जग में सुख उल्लास।
जो अंतर में दीप जलाए,
वह अद्वैत का अमृत पाए।

योगेश गहतोड़ी

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