
प्राकृतिक संपदा का अनुपम भंडार
छुपा हुआ है, धरा के आंचल में।
जैव विविधता है, फिर भी….
एक- दूसरे से जुड़े हुए हैं, इस आंगन में।
हरा भरा हो, अवनि का आंचल
मन को बड़ा, सुकून पहुंचाता है।
अत्यधिक अवशोषण हो, यदि…
प्राकृतिक आपदा ही, लाता है।
सीना चीर धरा का, मानव ने…
जब उसमें कोई बीज लगाया।
हरी-भरी लहलहाती फसलों संग..
धरा ने, दोगुना करके लौटाया।
यूं ही नहीं धरा को, हम मां कहते हैं।
करती, प्राणी मात्र का भरण पोषण
और उसमें ही, आश्रय लेते हैं।
चलो !आज इसकी सुरक्षा का प्रण लेते हैं।
उर्मिला ढौंडियाल’उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड)