
मां की आस पिता का संबल,
बच्चों की अभिलाषा!
प्यारी पाती आती जब थी,
पुलकित घर हो जाता!!
घरनी घरमें आस लगाए
रहती बैठी ऐसे !
‘जिज्ञासु’ चकोर चांद के लिए,
टक टकी लगाए जैसे!!
सीमापर जवान को अपनी,
चिंता दूर भगाती !
बीवी बच्चे मात-पिता संग,
सबका हाल सुनाती!!
गाय बैल खेती-बारी फसलों,
की हाल बतलाती!
बाग बगीचे और अनाज की,
कीमत को दर्शाती !!
पाती पा होता, रण में निहाल,
रण रंगी !
ओज तेज बल देख, चले भाग
प्रतिद्वन्द्वी !!
कमलेश विष्णु सिंह ‘जिज्ञासु’