
(पद्य दोहा छंद)
छल के साथी झूठ हैं, कपट सदा ही साथ।
सत्य न पावे ज्योति को, अंधकार के हाथ।।1।।
कपट भले ही जीत ले, पल भर का संसार।
सत्य सदा विजयी रहे, फैले ज्योति अपार।।2।।
लोभ लालसा संग में, जब होता व्यापार।
विश्वास टूटे क्षण भर में, बिखरे सारा प्यार।।3।।
मृगजल जैसा लोक में, छल–कपट का खेल।
जग भ्रमित हो डूबता, सत्य रहे अविचल।।4।।
जो छल–कपट रचेंगे, पाएँ केवल हानि।
सत्यनिष्ठ जीवन बने, जग में अमर कहानी।।5।।
योगेश गहतोड़ी