
उनकी लिखी पंक्तियां आज भी
प्रासंगिक है –
“काल के कपाल पर लिखता हूं
गीत नया गाता हूं
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नया गाता हूं”
जनता के बीच प्रसिद्ध अटल बिहारी वाजपेई अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। वे 1996 में बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री
बने थे जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने। वरिष्ठ सांसद श्री वाजपेई जी राजनीति के क्षेत्र में चार दशकों तक सक्रिय रहे। वे लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में दो बार चुने गए जो अपने आप में ही एक कीर्तिमान है।
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेई जी ने तीन बार देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। वाजपेई जी को सन 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’
से सम्मानित किया गया था। राजनेता होने के साथ ही वे एक कोमल हृदय के कभी भी थे।
“जूझने का मेरा इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा ना था
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किया
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए”
परिवार का विशुद्ध भारतीय वातावरण अटल जी की रग- रग में बचपन से ही रचने बसने लगा था। वंशानुक्रम और वातावरण दोनों ने अटल जी को बाल्यावस्था से ही प्रखर राष्ट्रभक्त बना दिया था। अध्ययन के प्रति उनमें बचपन से ही प्रगाढ़ रुचि थी। अटल जी की बी. ए. तक की शिक्षा ग्वालियर में ही हुई। वे वाद- विवाद प्रतियोगिता में सदैव भाग लेते थे। निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है ।
महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक श्री वाजपेई भारत को सभी राष्ट्रों के बीच
एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे।
उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की संकल्प शक्ति,भगवान श्री कृष्ण की राजनीतिक कुशलता और आचार्य चाणक्य की निश्चयात्मिका बुद्धि थी। वह अपने जीवन का क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण राष्ट्रसेवा के यज्ञ में अर्पित करते रहे। उनका उद्घघोष है —
“हम जिएंगे तो देश के लिए
मारेंगे तो देश के लिए
इस पावन धरती का कंकर-कंकर शंकर है, बिंदु- बिंदु गंगाजल है।”
भारत के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर वर करने में गौरव और गर्व का अनुभव करूंगा।”
उन्होंने अपनी एक भाषण में कहा था-“वीर जवानों! हमें आपकी वीरता पर गर्व है। आप भारत माता के सच्चे सपूत हैं। पूरा देश आपके साथ है। हर भारतीय आपका आभारी है।”
अटल जी के भाषणों का ऐसा जादू है कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते हैं। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी करते थे। उनकी वाणी सदैव विवेक और संयम का ध्यान रखती है। उनकी कविता उनके भाषणों में झलकती है। अटल जी का कवि रूप भी शिखर को स्पर्श करता है। उनके कवि युवा अनुकूल काव्य रचना करते रहे हैं। वे एक साथ छंदकार,गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार तथा व्यंग्यकार थे। यद्यपि उनकी कविताओं का प्रधान स्वर्ण राष्ट्र प्रेम का था तथापि उन्होंने सामाजिक तथा वैचारिक विषयों पर भी रचनाओं की हैं। प्रकृति की छबीली छटा पर तो वे ऐसा मुक्त हो जाते थे की अपना सुध- बुध खो बैठते थे।
प्रधानमंत्री अटल जी ने पोखरण में अनु परीक्षण करके संसार को भारत की शक्ति का एहसास कराया। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले तथा उसे पराजित करने वाले भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए अटल जी उनकी अग्रिम चौकी तक गए थे।
उन्हें भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचाससे अधिक वर्षों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण दिया गया था। 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’चुना गया। अपने नाम के ही समान अटल जी एक प्रतिष्ठित नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ,निस्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता कवि,साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। अटल जी जनता की बातों को ध्यान पूर्वक सुनते थे और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते थे। उनके कार्य राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को दिखाते हैं।
“मौत की उम्र क्या है..? दो पल भी नहीं
जिंदगी सिलसिला, आज “कल की नहीं”
ऐसे यशस्वी महापुरुष को मेरा कोटि-कोटि नमन!!
डॉ मीना कुमारी परिहार’मान्या’