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गजल


कतरा बहे आंख से
तो लोग लहू कहते हैं
हम उनकी बातों को
हर भाषा में गजल कहते हैं।।
उनकी याददाश्त अब
कमजोर हो रही है
हमारी यादो वो सब्र कहते हैं।।
तमन्ना तो उन्हे पाने की थी
हाले दिल अपना बताने की थी
मेरी नजर तो दरवाजे पे थी
वो हर आहट को नजर कहते है।
पुराना प्रेम का खत
जो हमने शाम को लिखा
वो अपनी किताब में
उसने छुपा लिया
हमें फिक्र उनकी हो रही थी
वो इश्क को मेरे डर कहते हैं।
नीरज कुमार नीर
इटारसी

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