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प्रसन्नता से जीना सीखो


” जिंदगी को प्रसन्नता से जीना सीखो
कलियों से तुम जीना सीखो
जीवन में फूल खिलाना सीखो
सुख-दु:ख में भी मुस्कुराना सीखो”
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिंदगी तो हर प्रणी जी लेते हैं पर प्रसन्नता से जीना की बात ही कुछ और है। प्रसन्नता वह है जिसे शब्दों में
वर्णन करना मुश्किल है। प्रशांत केवल महसूस किया जा सकता है। प्रसन्नता मूलतः मन की एक अवस्था है। प्रशांत एक ऐसा झरना है जो सबके भीतर बह रहा है, उसे कहीं से कुछ पाना नहीं पड़ता। घर परिवार में ही महत्त्वाकांक्षी बना दिया जाता है, फिर महत्त्वाकांक्षा में जीने लगते हैं। यही कारण है है कि बहुत कुछ पाने की चाह में प्रसन्न नहीं दिखते। अपनी वास्तविकता में नहीं दूसरों को दिखाने के लिए, दूसरों से सम्मान पाने के लिए, प्रशांत और महत्त्वाकांक्षा दो तलवारे हैं जो एक म्यान में नहीं रह सकते। प्रशांत कोई उपलब्धि नहीं है। यह तो स्वभाव है जो हर प्राणी में रहता है। हर प्राणी को एक -न -एक एक दिन इस दुनियां से जाना है तो क्यों ना अपने जीवन को प्रसन्नता से खुशनुमा बनाएं।
“मुस्कुरा के देखो तो ये जहां रंगीन है
वरना भीगी पलकों से तो आईना भी
धुंधला दिखता है”
महात्मा बुद्ध का मानना था कि खुशी पीड़ा के मुख्य कारणों को समझने से शुरू होती है। प्रसन्नता हमारे मूड को नकारात्मक से सकारात्मक अवस्था तक स्थानांतरित करने का एक अच्छा तरीका है। प्रशांत एक ऐसी चीज है यह केवल किसी की मुस्कान की अभिव्यक्ति से महसूस किया जा सकता है।
निम्नलिखित बातों को अमल करने पर हर प्राणी प्रसन्नचित रहना सीख सकते हैं—-
1-किसी से अपनी तुलना नहीं करना
2-प्रसन्नता लक्ष्य नहीं अभिव्यक्ति है
3- हर पल को जिएं
4- प्रकृति के सानिध्य में समय बिताएं
5- सहज और सरल रहें
6-कृतज्ञ की भावना
7-अतीत के दु:खद बातों को नजर अंदाज करें
8-सहयोग की भावना रखें
9-खेल और मनोरंजन से जुड़ें
10-परस्पर सौहार्द की भावना रखें
11-धैर्यता बनाए रखें
12-नैतिकता का पालन करें
अगर समाज को स्वस्थ बनाना है तो प्रेम और प्रसन्नता की आधारशिला पर जीवन बनाया जाना चाहिए।
“जिंदगी एक किताब है, हंसते हुए पढ़ना सीखो
हर लम्हा अनमोल है, बस इसे जीना सीखो”

डॉ मीना कुमारी परिहार

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