
सावन बीता जाए सजनवां,
तुम तब हूं नहीं आए!
कैसे बीतेगी ये उमरिया,
कोई मुझे समझाए!!
सजनवां सावन बीता जाए !
दूर देश में तुम जा बैठे,
चैन न मुझको आए!!
बीती कैसे रैन हमारी,
कैसे तुम्हें बताएं!!
सजनवां सावन बीता जाए!
कूं कूं बोले काली कोयलिया,
तन मे आग लगाए!
पिहुंक पपीहा बान चलाए,
जियरा बिध बिध जाए!!
सजनवां सावन बीता जाए !
आस लगाये बैठी साजन,
तबहुं नहीं तुम आए!
अब तो आकर गले लगा लो,
मधुर मिलन हो जाए !!
सावन बीता जाए सजनावां,
सावन बीता जाए!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”