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मौन


आहत और बौखलाई मैं
नि:स्तब्ध खड़ी थी।
एकाएक, अनाहूत,
वो सामने आ गया।
” कौन?? ” मैंने कहा,
“मौन —” धीमे से उसने कहा।
मेरे मन में अचरज समाया,
जब मैंने अपनी आंखों और जुबान को
“मौन” के साथ पाया!!!
मेरे मन ने मुझे समझाया।
” लाख दुखों की एक दवा है ये, “
मन बोला, ” दुखते रिसते जख्मों का
मरहम है ये,
इसे अपनाओ,अपनी रूह को
तनिक चैन दिलाओ—“
मैंने बाहें पसारी थी स्वागतार्थ।
वो— मौन —आंखों के जरिए
दिल में उतर आया था।

सुलेखा चटर्जी

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