
यह परिवर्तन की बेला है किसे परिवर्तन न भाता,
अगर परिवर्तन ना होता युवक उन्नति कैसे करता
चांद पर कब पहुंच पाता गगन को कैसे छू पाता
अगर बच्चा मां का आंचल छोड़ने में ,न सक्षम होता।।
यह परिवर्तन की बेला है ,उठो ,जागो खुद ही संभलो,
कोई रावण ना हर पाए, आत्मरक्षा स्वयं कर लो,
तुम ही दुर्गा , तुम्ही काली, भवानी भी तुम ही हो,
न छुईमुई सी तुम रह गई हो समर्पण
फिर क्यों करती हो??
यह परिवर्तन की बेला है पथ स्वयं प्रशस्त करना होगा ,
अंधेरे पथ पर बढने से ,पहले सोचना होगा।
सफलता की तुम मूरत हो, सृजन की
तुम हो निर्मात्री
कदम पीछे ना करना तुम तू बन रानी झांसी वाली ।।
यह परिवर्तन की बेला है, फिसलकर न गिरना होगा
आत्मविश्वास, आत्मबल से तुम्हें आगे बढ़ना होगा ।
आत्मसंयम रखोगी यदि न तुमको कोई छू सकता।
आत्मचिंतन आत्म मंथन स्वयं तुमको करना होगा
यह परिवर्तन की बेला है, समय आया प्रगति वाला,
देश विदेश और आगे अंतरिक्ष तक पहुंचने वाला,
कमाई खूब करना तुम विदेशों में जाकर रहना
मगर जिसने है पहुंचाया उनका सम्मान सदा करना।।
स्वरचित पुष्पा पाठक छतरपुर मध्य प्रदेश