
मैं, “मैं” को छोड़कर आगे निकल गया हूँ,
क्योंकि असहज थी वो—
मेरे साथ चलने में।
अब मेरा लौट आना शायद सम्भव नहीं,
अब आना तो उसे ही होगा
मेरे पास।
वो आएगी या नहीं—
ये तो वही जाने,
मैं तो चला जाऊँगा
उसे छोड़कर।
फिर वो समझे—
क्या करेगी, बाद में।
मैं अब “मैं” नहीं रहा,
मैं “तू” हो गया हूँ,
और तू “मैं” बनी या नहीं—
इस से मैं अब भी अनजान हूं।
आर एस लॉस्टम