
।।हर पल बहता रहता जीवन ।।
शीतल मलयज सुरभित दिगंत,
पवन संग उड़ता घन अनंत।
गिरती बूंदें जा वन-उपवन,
मंद स्वर में करती है कथन
हर पल बहता रहता जीवन।।
नील गगन पर छाए तम-घन,
चमके बिजली गूंजे हर कण
धरा करे फिर पावन स्पंदन,
नव अंकुर से जागे अभिनंदन,
खिल उठता है हर घर आंगन।।
सरिता तट हर्षित हो तरुवर,
मृदु जलधार बहे झर झर निर्झर
पपीहा बोले पीहू पीहू स्वर भर
मोर नाचे नभ कर निनदन
खुशियों से झूमे मिटे विघन।।
कुसुमित क्यारी हँसे लजाकर,
भौंरे गाएँ मृदु गूँज सजाकर।
धरती पहने हरित अंबर,
झूमे जीवन सहज निखरकर
मुस्काने लगता हर उपवन।।
प्रकृति करे तब मौन कथन,
क्षण में कह दे अनंत वचन।
मन में जागे सहज समर्पण,
अपना सब कर दे अर्पण
जीवन हो तब सदा पावन।।
पुष्पा पाठक
छतरपुर मध्य प्रदेश