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हरितालिका व्रत का महात्म्य


  भारतीय हिंदू महिलाएं अपने सुहाग की कामना के लिए हरितालिका तीज का व्रत रखती हैं। हर वर्ष हरितालिका तीज का पर्व गणेश चतुर्थी से 1 दिन पहले आता है। भादो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में हरितालिका तीज पर्व मनाया जाता है। हरियाली मौसम में आने के कारण इसे हरियाली तीज भी कहते हैं। महिलाओं के लिए सबसे खास होता है। इस दिन दिवस महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत रखती हैं। कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं। भक्ति भाव से पूर्ण इस कठिन व्रत को पूरे दिन निर्जला रहकर किया जाता है। ना कोई आहार ग्रहण किया जाता है न ही पानी पिया जाता है। प्रातः काल स्नान कर शिवजी की आराधना में पूरा दिन समर्पित किया जाता है।
     हरितालिका तीज का संबंध माता पार्वती से जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में पार्वती के पिता हिमालय  ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करने का वादा किया था। देवी पार्वती ने अपनी सहेलियों से खुद का अपहरण करने को कहा, जिसके बाद वह उन्हें जंगल में ले गई। क्योंकि पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं, जिसके लिए उन्होंने तपस्या की और शिव की आराधना में लीन हो गई। शिव पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और शिव ने पार्वती से विवाह करने का वरदान दिया। तब पार्वती ने कहा कि जो भी स्त्री अपने पति की लंबी उम्र के लिए हरितालिका तीज का व्रत निराहार रहकर करेंगी। उसे शिव परिवार का आशीर्वाद मिलेगा।

डॉ मीना कुमारी परिहार

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