
(स्वरचित गद्य आलेख)
1. प्रस्तावना
मनुष्य का जीवन इच्छाओं और कर्मों की जटिल डोर से बुना हुआ है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसे वही कार्य मिले, जिसमें उसकी रुचि, योग्यता और सुविधा हो। किंतु जीवन का सत्य यह है कि परिस्थितियाँ हमेशा हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं चलतीं।
जब हमारी इच्छाएँ अपूर्ण रह जाती हैं या मनचाहा कार्य नहीं मिलता, तो मन खिन्न हो जाता है और क्रोध का भाव जाग उठता है। यही क्रोध कभी हल्की चिड़चिड़ाहट के रूप में और कभी प्रचंड आक्रोश के रूप में सामने आता है।
भगवद्गीता (3.37) में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है— “काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः” अर्थात जब इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं तो वही अपूर्ण कामनाएँ क्रोध के रूप में प्रकट होती हैं। इस प्रकार क्रोध कोई अलग तत्व नहीं, बल्कि हमारी इच्छाओं के टूटने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।
2. क्रोध का स्वरूप
मनोविज्ञान की दृष्टि से क्रोध एक मानसिक प्रतिक्रिया (emotional reaction) है, जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपमानित होता है, विफल होता है या उसे अपनी स्वतंत्रता बाधित होती प्रतीत होती है।
क्रोध के दो रूप बताए जाते हैं—
1. तात्कालिक प्रतिक्रिया: जैसे किसी अपमान पर अचानक हुआ क्रोध। यह सामान्यतः क्षणिक होता है।
2. स्थायी स्वभाव: जब व्यक्ति छोटी-सी बात पर भी बार-बार क्रोधित होता है, तो यह उसका स्वभाव बन जाता है।
पुराणों में क्रोध को ‘असुर’ की संज्ञा दी गई है। विष्णु पुराण कहता है— “क्रोध मनुष्य को अंधा कर देता है, विवेक छीन लेता है।”
महाभारत (भीष्मपर्व) में भीष्म पितामह ने कहा— “क्रोधाद्भवति संमोहः, संमोहात्स्मृतिविभ्रमः” अर्थात क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रमित होती है और स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है।
3. क्रोध करने के संभावित गुण
यद्यपि क्रोध सामान्यतः दोष माना गया है, परंतु इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं।
- आत्मसम्मान की रक्षा: जब किसी का अपमान होता है, तो क्रोध उसे अन्याय सहने से रोकता है। रामायण में लक्ष्मण का क्रोध रावण के दुष्ट आचरण पर उचित प्रतीत होता है, क्योंकि वह अपनी भाभी सीता जी के सम्मान की रक्षा के लिए खड़ा हुआ था।
- अनुशासन और दृढ़ता: कभी-कभी अनुशासन स्थापित करने के लिए कठोरता और क्रोध का प्रदर्शन आवश्यक होता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करना ही वीरता है और यहाँ उचित आक्रोश आवश्यक है।
- प्रेरणा: द्रौपदी के अपमान के बाद पांडवों का क्रोध उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित करता है। यद्यपि युद्ध ने विनाश किया, लेकिन यह क्रोध अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा था।
4. क्रोध करने के दोष
शास्त्रों में क्रोध को प्रायः विनाशकारी ही बताया गया है।
- विवेक और धैर्य का नष्ट होना: वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि रावण ने क्रोधवश विभीषण को अपमानित किया और उसे राज्य से निकाल दिया। परिणाम यह हुआ कि विभीषण राम की शरण में गए और रावण का सर्वनाश हो गया।
- संबंधों में कटुता: महाभारत का कारण दुर्योधन का अहंकार और क्रोध ही था, जिसने भाई–भाई को शत्रु बना दिया।
- मानसिक और शारीरिक हानि: आयुर्वेद में कहा गया है कि क्रोध से पित्त दोष बढ़ता है, जिसके कारण रक्तचाप, हृदय रोग और मानसिक असंतुलन जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
5. क्रोध के लाभ
यदि क्रोध संयमित हो और उचित समय पर प्रकट हो, तो यह लाभकारी भी सिद्ध हो सकता है।
- त्वरित विरोध दर्ज कराना: गीता में कहा गया है कि अधर्म पर मौन रहना भी पाप है। कभी-कभी क्रोध ही व्यक्ति को अन्याय के विरोध में खड़ा करता है।
- गलत कार्य रोकना: भगवान शंकर का त्रिपुरासुर के प्रति क्रोध सृष्टि की रक्षा का कारण बना। इस प्रकार क्रोध कभी–कभी दुष्टता का अंत करता है।
- आत्मविश्वास का प्रतीक: महाभारत में भीम का क्रोध अन्याय के समय उसकी शक्ति और आत्मविश्वास का परिचायक था।
6. क्रोध से हानि
किन्तु लाभ सीमित हैं और हानियाँ कहीं अधिक होती हैं।
- निर्णय क्षमता पर नकारात्मक असर: रावण का सीता-हरण उसके अनियंत्रित क्रोध और अहंकार का परिणाम था, जिसने उसकी लंका का विनाश कर दिया।
- सामाजिक और व्यावसायिक हानि: दुर्योधन का क्रोध पूरे समाज को विनाश की ओर ले गया। युद्ध में लाखों लोगों का नाश हुआ।
- परिवार और मित्रों से दूरी: विभीषण और रावण का अलगाव इसी का उदाहरण है। आज भी परिवारों में गुस्से के कारण रिश्ते टूट जाते हैं।
7. अन्य प्रभाव
क्रोध केवल व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है।
- मनुस्मृति कहती है—“क्षमा धर्मस्य मूलम्” अर्थात क्षमा ही धर्म का मूल है।
- महात्मा विदुर ने नीति शास्त्र में कहा है कि धैर्यवान व्यक्ति ही वास्तविक विजयी होता है।
- रामायण में भगवान राम ने विभीषण को शरण देकर यह सिद्ध किया कि संवाद, क्षमा और सहयोग ही समाज में शांति का मार्ग है।
8. निष्कर्ष
मनपसंद कार्य न मिलने पर क्रोध आना स्वाभाविक है, क्योंकि अपूर्ण इच्छाएँ ही क्रोध का कारण बनती हैं। क्रोध कभी-कभी लाभकारी भी हो सकता है, जैसे- आत्मसम्मान की रक्षा करना, अनुशासन बनाए रखना और अन्याय के विरोध में प्रेरणा देना,
लेकिन इसके दोष अधिक गंभीर हैं—विवेक और धैर्य का नष्ट होना, संबंधों में कटुता, मानसिक और शारीरिक हानि होती है, इसलिए अनियंत्रित क्रोध केवल हानि करता है, जबकि संयम, संवाद और क्षमा जीवन का सच्चा मार्ग हैं।
अतः विवेकपूर्ण मार्ग यही है—
👉 क्रोध पर संयम रखें।
👉 संवाद के द्वारा समाधान खोजें।
👉 क्षमा को जीवन का आभूषण बनाएं।
शास्त्रों का संदेश स्पष्ट है— “क्षमा वीरस्य भूषणम्”, अर्थात क्षमा ही सच्चे वीर का वास्तविक आभूषण है।
योगेश गहतोड़ी