
(स्वरचित कहानी)
बहुत समय पहले गंगा नदी के किनारे एक सुंदर और शांत गाँव था। उस गाँव में एक संत रहते थे। संत बहुत ज्ञानी थे और अपना अधिकांश समय ध्यान व जप में बिताते थे। सुबह और शाम वे गंगा तट पर बैठकर ॐ का उच्चारण करते और गाँववालों को आध्यात्मिक बातें समझाते।
संत अक्सर कहते—“ब्रह्मनाद के चार आयाम हैं—अकार, उकार, मकार और ॐकार। “अकार” चेतना का बीज है, जो हमें सोचने और समझने की शक्ति देता है। “उकार” प्राणों का प्रवाह है, जिससे हमारे भीतर ऊर्जा और उत्साह आता है। “ॐकार” परमात्मा से मिलन का मार्ग है, जो हमें जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य दिखाता है। लेकिन इन सबका आधार है “मकार”, जो जीवन को संतुलन, स्थिरता और न्याय प्रदान करता है।”
गाँववाले “अकार, उकार और ॐकार” का तो जप करते, लेकिन “मकार” को महत्व नहीं देते थे। वे सोचते थे कि यह साधारण है और इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं है।
एक दिन गाँव का एक पढ़ा-लिखा युवक संत के पास आया और बोला—“बाबा! क्या ये ध्वनियाँ सच में हमारी परेशानियाँ दूर कर सकती हैं? खेत सूख जाते हैं, कभी बाढ़ आ जाती है, लोग छोटी-छोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं। क्या सिर्फ मंत्र जपने से गाँव में सुख-शांति आ सकती है?”
संत मुस्कुराए और शांत स्वर में बोले—“बालक! ये ध्वनियाँ केवल शब्द नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की शक्तियाँ हैं। अकार, उकार और ॐकार का जप तो सभी करते हैं, लेकिन मकार की उपेक्षा कर देते हैं। जब मकार को भूल जाते हो, तब जीवन असंतुलित हो जाता है। मकार ही वह शक्ति है जो विचारों में धैर्य, कर्मों में न्याय और भावनाओं में विवेक लाती है। जहाँ मकार का अभाव होता है, वहाँ कलह, अन्याय और अशांति जन्म लेती है।”
संत के बार-बार समझाने के बाद भी गाँववालों को संत की बात गहराई से समझ नहीं आई। उन्होंने मकार को फिर भी साधारण ही समझा और उसका जप नहीं किया।
धीरे-धीरे गाँव में समस्याएँ बढ़ने लगीं। खेतों में फसल कमजोर हो गई, लोग आपस में झगड़ने लगे और गाँव पर कभी सूखा, तो कभी बाढ़ आने लगी। भूख और भय से गाँववाले परेशान हो उठे, पर उन्हें असली कारण समझ नहीं आ रहा था।
तब एक दिन संत ने पूरे गाँव को एकत्र किया और सबको समझाया—“भाइयों! सुनो—अकार हमें ज्ञान देता है, उकार हमें जीवन की ऊर्जा देता है और ॐकार हमें परमात्मा की ओर ले जाता है, लेकिन इन सबको स्थिर और फलदायी बनाने वाला “मकार” है। यदि मकार का अभाव होगा तो ज्ञान अधूरा रहेगा, ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगी और दिशा भटक जाएगी। मकार ही वह स्तंभ है जो संतुलन और न्याय देता है। जब मनुष्य मकार को अपनाता है, तभी उसका जीवन स्थिर, संतुलित और सफल होता है।”
गाँववाले संत की बात को अब गंभीरता से समझने लगे। उन्होंने मकार को अपने जीवन में उतारने का निश्चय किया। उन्होंने आपस में प्रेम और सहयोग बढ़ाया। वे एक-दूसरे की मदद करने लगे और हर काम में न्याय और विवेक का पालन करने लगे।
धीरे-धीरे गाँव का वातावरण बदलने लगा। खेतों में फिर से फसलें लहलहाने लगीं। लोगों के बीच झगड़े और विवाद समाप्त हो गए। बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी कम हो गईं। अब गाँव शांति, प्रेम और समृद्धि से भर गया।
गाँववालों ने अंततः यह सत्य जान लिया कि “अकार” ज्ञान का बीज है, “उकार” जीवन की शक्ति है और “ॐकार” परमात्मा का मार्ग है, लेकिन “मकार” ही वह आधार है, जो सबको संतुलन और स्थिरता देता है। जिसने भी “मकार” को अपने जीवन में अपनाया, उसके जीवन में सदैव शांति, सुख और समृद्धि बनी रहती है।
इस अनुभूति के बाद गाँव के सभी लोग प्रतिदिन चारों आयामों— अकार, उकार, मकार और ॐकार —का जप करने लगे। गाँववाले नित संत के चरणों में नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते और अपने जीवन को अधिक पवित्र, संतुलित और आनंदमय बनाने लगे।
योगेश गहतोड़ी