
सिध्दिविनायक, मंगल मूर्ति,
रिद्धि सिद्धि के स्वामी!
अब तो सुन लो विनती मेरी,
हे गणपति अंतर्यामी!!
गौरी नंदन हे दुख भंजन,
करो दूर दुख सारे !
अरज हमारी सुनो गजानन,
आओ द्वार हमारे !!
ध्यान धुरुं प्रति-पल प्रथमेश्वर,
चित्त स्थिर हो जाए!
करूं काम ऐसा सर्वेश्वर,
हित सब का सध पाए!!
शतपथ पर जिज्ञासु जन का,
करो मार्ग निष्कंटक!
विपदा में विचलित ना हों वें,
हरो सदा सब संकट!!
मंगल मूर्ति मंगलमय हो,
बुद्धि विवेक दो ऐसा!
जग में सुख समृद्धि आए
मानस मराल हो वैसा !!
कमलेश विष्णु सिंह ‘जिज्ञासु’