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वक्त


जब से नजर बेरुखी होने लगी
रास्ते भी दूरी बनाने लगे हैं
उम्र से थकान कह रही हैं
ठहर जा देख
अब रात हो चली है।
मेरे समय का अब भरोसा नहीं
वक्त की घड़ी अब रुकने लगी है
जुबा से आवाज कह रही है
अब खामोश हो जा
देख अब दरार हो चली है।।
याददाश्त अब
कमजोर होने लगी
जैसे वो विदाई पे पछता रही हैं
कह दिया है तन्हाईयो ने
हंस के,
भूल जा पुराने लम्हे
अब वो नई दुनिया
की हो चली है।।
( संभले थे जो लम्हे
मैंने वक्त के लिए
तकाजा वे ही
मेरे हाल पे करने लगे हैं
मेरी लिखी पुरानी
डायरी के पन्ने
आज खुद ब खुद
वक्त की दहलीज पे
बिखरने लगे हैं )
राष्ट्रीय कवि
नीरज चौधरी “नीर इटारसी

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