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भारत की पराधीनता

हमारे भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। हमारा भारत कभी मानवता के सागर के लिए जाना जाता था। प्राचीन समय में हमारा देश सबसे उन्नत था। लेकिन कई सदियों तक पराधीनता के होने की वजह से हमारे देश की स्थिति ही बदल गई है। भारत आज के समय में दुर्बल, निर्धन और सिकुडकर रह गया है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कई महान लोगों ने अपने प्राणों को त्याग दिया था। लेकिन स्वाधीन होने के कई सालों बाद भी मानसिक रूप से हम अभी तक स्वाधीन नहीं हो पाए हैं। हमने विदेशी संस्कृति, विदेशी भाषा को अपनाकर अपने आपको आज तक मानसिक पराधीनता से परिचित करवा रही है। भारत के लोग ही पराधीनता को अधिक समझते हैं क्योंकि उन्होंने ही पुराने समय से अंग्रेजों द्वारा पराधीनता को सहन किया है। पराधीनता के महत्व को केवल वो व्यक्ति समझ सकता है जो कभी खुद पराधीन रहा हो। हमारा देश कई सालों से लगातर पराधीन होता आ रहा है। इसकी वजह से हम केवल व्यक्तिगत रूप से पिछड़ गए हैं और सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारे देश का पतन हो रहा है।

देश के प्रभावित होने की वजह से हम विदेशी संस्कृति और सभ्यता से बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हैं। आज हम स्वतंत्र होने के बाद भी अपनी संस्कृति और सभ्यता को पूरी तरह से भूल चुके हैं। आज हम अपने शहर में रहते हुए भी अपने रष्ट्र से कोशों की दूरी पर हैं इसकी वजह हमारे देश की पराधीनता है। हमें स्वाधीनता का सही मतलब पता होने की वजह से आज तक मानसिक पराधीनता के लिए स्वतंत्र होने का झूठा अनुभव और गर्व करते हैं। आज के समय में हमारी यह स्थिति हो गई है कि हम आज तक स्वाधीनता के मतलब को गलत समझ रहे हैं।

आज हम स्वाधीनता के गलत अर्थ को स्वतंत्रता से लगा कर सबको अपनी उदण्डता का परिचय दे रहे हैं। हम भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को बार-बार श्रद्धांजली अर्पित करते रहते है। अंग्रेजों ने भारत पर हुकुमत भारत के सारे धन को लूटकर अपने देश ले जाने के उद्देश्य से की थी।

पराधीनता के कारण विकास अवरुद्ध :
जो व्यक्ति पराधीन होते हैं उनकी मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं उनके स्वाभिमान को कदम-कदम पर चोट पहुंचाई जाती है। उन व्यक्तियों में हीन भावना पैदा हो जाती है उनका साहस, स्वाभिमान, दृढता और गर्व धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं वो अकर्मण्य हो जाते हैं क्योंकि उनमें आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं वे भौतिक सुखो को ही सब कुछ मान लेता है और कई बार तो वह इन सुखों से भी वंचित रह जाते हैं। पराधीन व्यक्तियों की सोचने और समझने की सकती बिलकुल खत्म हो जाती है। उनकी सृजनात्मक क्षमता भी धीरे-धीरे खत्म होती चली जाती है। पराधीनता से एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक समाज और राष्ट्र का भी पतन होता है।
इससे देश की पराधीनता के इतिहास को भी देखा जा सकता है। बहुत से लोग तोड़-फोड़, हत्या, डकैती, लूटमार, अनाचार और दुराचार जैसे अनैतिक कामों को करके अमानवता का परिचय दे रहे हैं और हमारे समाज को पथभ्रष्ट कर रहे हैं। इस प्रकार से हम अपने देश के प्रभाव और स्वरूप को समझ सकते हैं।

*आलस्य का परिणाम *:
हमारा आलस्य भी पराधीनता का एक कारण होता है। जो व्यक्ति आलसी होते हैं उनका जीवन दूसरों पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति कर्मठ और स्वालंबन के महत्व को समझते हैं उन्हें कोई भी ताकत पराधीन नहीं बना सकती है। स्वालंबी व्यक्तियों में अपने आप ही स्वंतत्रता प्रेम का भाव जाग जाता है। हम खुद तो आलसी होते हैं और भगवान को ये दोष देते हैं कि उन्होंने हमारी किस्मत में ऐसा लिखा था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता है अगर आप दृढ और साहसी बनेंगे तो पराधीनता आपको कभी छू भी नहीं पायेगी।

राष्ट्रोंन्नति में स्वाधीनता का महत्व:
हमारा यह कर्तव्य होता है कि हमें किसी भी राजनैतिक, सांस्कृतिक और किसी भी अन्य प्रकार की स्वाधीनता को अपनाना नहीं चाहिए। हर राष्ट्र के लिए स्वाधीनता का बहुत महत्व होता है। एक स्वतंत्रता सेनानी ने पराधीनता के समय में विदेश की यात्रा की थी। हर जगह पर उनका स्वागत किया गया और लोगों ने उनकी बात बड़े ही ध्यान से सुनी। अपने देश को स्वाधीन बनाने के लिए उन्होंने विश्व समुदाय का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। जब वे भारत लौटे तो उन्हें अपना अनुभव सुनाई दिया था उन्होंने कहा कि वे बहुत से देश घूमे लेकिन वे जहाँ भी गये भारत की पराधीनता का दाग लगा रहा। कोई भी राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता जब वह स्वतंत्र हो। जो देश या जाति स्वाधीनता का मूल्य नहीं समझते हैं और स्वाधीनता को हटाने के लिए प्रयत्न नहीं करते वे किसी-न-किसी दिन पराधीन जरुर हो जाते हैं और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। स्वाधीनता को पाने के लिए क़ुरबानी देनी पडती है। स्वाधीनता का महत्व राष्ट्र में तभी होता है जब पराधीनता प्रकट नहीं होती है।

स्वाधीनता एक वरदान:
अगर पराधीनता एक अभिशाप होता है तो स्वाधीनता एक वरदान है। अगर स्वाधीनता का आनंद लेना है तो हर व्यक्ति, परिवार और जाति को स्वाधीनता का पाठ जरुर पढ़ाना चाहिए। एक मनुष्य होकर दूसरे मनुष्य की दासता को स्वीकार करना ठीक बात नहीं है। भगवान की गुलामी करने की भी जरूरत नहीं होती है। स्वाधीनता में रहकर चाहे वो मनुष्य हो या फिर पशु-पक्षी सभी खुश होते हैं लेकिन वे पराधीनता के नाम से भी घबराते हैं। हर कोई अपने जीवन में स्वतंत्र रहना चाहता है कोई भी नहीं चाहता कि उसे पराधीनता को स्वीकार करना पड़े।

उपसंहार:
हमें कभी भी मुसीबतों से हार नहीं माननी चाहिए। हमें पराधीनता को कभी-भी स्वीकार नहीं करना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति को जन्म से स्वतंत्रता प्राप्त होती है। व्यक्ति जो स्वतंत्र होकर अनुभव करता है वो पराधीन होकर नहीं कर सकता। जो व्यक्ति आँधियों से लड़ सकते हैं वे कभी-भी पराधीनता से पराजित नहीं होते हैं।

डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ

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