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शिक्षक और समाज

संघर्ष, प्रयास और अनुभव सामाजिक दृष्टि से सशक्त शिक्षक होते हैं।

महान शिष्य स्वामी विवेकानंद ने अपने महान शिक्षक और गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से जो 11 सवाल पूछे थे और उनके उत्तर भारतीय समाज में शिक्षक के महत्व को रेखांकित करते हैं। शिष्य और महान शिक्षक के मध्य हुए प्रश्न और उत्तर आप भी पढ़ें:-
रामकृष्ण परमहंस एक अद्भुत संत थे। वैसे उन्हें संत कहना गलत है, क्योंकि वे परमहंस थे। हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है। रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया के सभी धर्मों के अनुसार साधना करके उस परम तत्व को महसूस किया था। उनमें कई तरह की सिद्धियां थीं लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे।
उन्होंने विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया, जो बुद्धि और तर्क में जीने वाला बालक था। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद के हर प्रश्न का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया था। यहां प्रस्तुत हैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच हुए एक अद्भुत संवाद के अंश…

  1. स्वामी विवेकानंद : मैं समय नहीं निकाल पाता। जीवन आपाधापी से भर गया है।
    रामकृष्ण परमहंस : गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।
  2. स्वामी विवेकानंद : आज जीवन कितना जटिल क्यों हो गया है?
    रामकृष्ण परमहंस : जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो। यह इसे जटिल बना देता है। जीवन को सिर्फ जियो।
  3. स्वामी विवेकानंद : फिर हम हमेशा दु:खी क्यों रहते हैं?
    रामकृष्ण परमहंस : परेशान होना तुम्हारी आदत बन गई है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते।
  4. स्वामी विवेकानंद : अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?
    रामकृष्ण परमहंस : हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है। सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है। अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं। इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता।
  5. स्वामी विवेकानंद : आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?
    रामकृष्ण परमहंस : हां, हर लिहाज से संघर्ष, प्रयास और अनुभव सशक्त शिक्षक की तरह होते हैं। पहले वह परीक्षा लेलेते हैं और फिर सीख देते हैं।
  6. स्वामी विवेकानंद : समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं?
    रामकृष्ण परमहंस : अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। अपने भीतर झांको। आखें दृष्टि देती हैं। हृदय राह दिखाता है।
  7. स्वामी विवेकानंद : क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?
    रामकृष्ण परमहंस : सफलता वह पैमाना है, जो दूसरे लोग तय करते हैं। संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो।
  8. स्वामी विवेकानंद : कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?
    रामकृष्ण परमहंस : हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं।
  9. स्वामी विवेकानंद : लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?
    रामकृष्ण परमहंस : जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, ‘मैं ही क्यों?’ जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, ‘मैं ही क्यों?’
  10. स्वामी विवेकानंद : मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?
    रामकृष्ण परमहंस : बिना किसी अफसोस के अपने अतीत का सामना करो। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो। निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो।
  11. स्वामी विवेकानंद : एक आखिरी सवाल। कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनायें बेकार जा रही हैं?
    रामकृष्ण परमहंस : कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है। यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है। मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है। इसलिये सदा प्रसन्न रहो, स्वस्थ रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो और आश्वस्त रहो।
    जिस तरह से स्वामी व गुरु रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य स्वामी विवेकानंद जी को प्रश्नोत्तर के रूप में यह शिक्षा दी थी उसके आधार पर स्वामी विवेकानन्द की गिनती आज भी विश्व के महान समाज सुधारकों में होती है।
    गुरु गोविंद दोउ खड़े
    काके लागों पाँय।
    बलिहारी गुरु आपने,
    गोविन्द दियो बताय॥

ॐ गुरुम् गुरवे नमः।

डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ: 31 अगस्त 2025

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