
जब दो लोगों के बीच
मौन
अथाह रेगिस्तान बनकर
पसार जाए,
तो समझ लो
बरसों पहले बंधी
प्यार की वह गांठ
दोनों के मन में चुभने लगी है।
तब —
मन हिसाब करने लगता है,
यादों की किताब का
एक एक पन्ना
वापस जीने लगता है।
फिर????
वह कभी भी
मौन के उस रेगिस्तान को
पार नहीं कर पाता है।
उस रेगिस्तान के एक छोर पर,
शोर करते सन्नाटे के बीच
टूटे दिल की कीर्चें चुनता
खड़ा रह जाता है।
सुलेखा चटर्जी