
ऋषि मुनियों की इस तपस्थली को
ना जाने किसकी नजर लगी।
जिस तरह से ढह रहे पहाड़ यहां पर
शायद यह धरा अपवित्र हो रही।
राजप्रसादों का आराम छोड़ ऋषि
ज्ञान और आध्यात्म की खोज में यहां बसे थे ।
उनके तप और साधना से अब तक
यहां, पर्वत अपनी जगह अटल खड़े थे।
चार धाम की यह पावन धरती
आज पर्यटकों की गंध ढो रही।
नहीं रही आस्था लोगों में….
इसीलिए प्राकृतिक आपदाएं हो रही।
धार्मिक आस्था के नाम पर
आजकल शैर- सपाटे हो रहे।
रुष्ट हो रहे देवता उन स्थानों पर
सैलाबों से उन स्थानों को धो रहे।
लालच के वसीभूत मानव ने
नदियों का मार्ग अवरुद्ध किया ।
विकास की इस अंधी दौड़ में
प्रकृति को कई दफा नष्ट किया।
वैष्णो देवी, शिमला, कुल्लू, मनाली।
चमोली, रुद्रप्रयाग, थराली, धराली ।
झेल रहे प्राकृतिक आपदा का दंस
सैलाब ने आज सब कर दिए हैं खाली।
ये सब वो पवित्र यात्रा स्थल हैं
जहां भगवान साक्षात दर्शन देते हैं।
कुछ तो गलती कर रहे इंसान
जो भगवान भी मुंह मोड़ रहे हैं।
एक अपील, इन यात्रा स्थलों को
पर्यटकस्थल कदापि ना बनाएं।
प्रलय का संकेत दे रही कुदरत
श्रद्धा और आस्था से ही शीश झुकाएं।
उर्मिला ढौंडियाल ‘उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड )