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शिक्षक राष्ट्र निर्माता


कोई भी राष्ट्र वहाॅं के वासियों के लिए माॅं होती है । फलत: राष्ट्र वासी जहाॅं राष्ट्र के लाल होते हैं , राष्ट्र के भक्त होते हैं । अतः वे राष्ट्र के अधीन होते हैं और राष्ट्र उनके अधीन होता है । उन्हीं वासियों में से राजनीति में उभरे हुए नेता राष्ट्र के विधायक , सांसद और मंत्री होते हैं , जो अपने राष्ट्र का नेतृत्व करते हैं , किंतु वे राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते हैं । राष्ट्र का निर्माण तो शिक्षक ही करते हैं , क्योंकि शिक्षक हों यदि सुशिक्षित तो राष्ट्र भी सुशिक्षित होगा । यही नहीं , शिक्षक का ही देन होता है कि राष्ट्र के विधायक सांसद और मंत्री भी सुशिक्षित होते हैं , जिसके कारण प्रजा से लेकर विधायक सांसद और मंत्री तक सभी सभ्य , शिष्ट , निष्ठ , व्यवहार कुशल , आदर स्नेह से परिपूर्ण होते हैं और वे अंततः विश्व में सुविख्यात होते हैं ।
वह राष्ट्र ही बता देता है कि उसके वासी और शिक्षक कैसे हैं ?
राष्ट्र में शिक्षक सबसे बड़ा सम्मानित और पूजित पद होता है । इनकी तीन उपाधियाॅं हैं ।
प्रथम गुरु
द्वितीय शिक्षक
तृतीय अध्यापक ।
गुरु : गुरु में दो वर्ण होते हैं : गु और रु । गु से गुणात्मक और रु से रुख अर्थात दिशा । अर्थात जो गुणात्मक दिशा प्रदान करे वही गुरु कहलाता है ।
शिक्षक : शिक्षक मे तीन वर्ण हैं , जिनका अर्थ निम्नलिखित है :
शि : शिकवा या शिकायत
क्ष : क्षमा
क : कर्म
शिकवे शिकायतों से दूर रहते हुए और क्षमा दान करते हुए अपने कर्मों पर अग्रसर रहनेवाले ही शिक्षक कहलाते हैं ।
शिक्षा :
शि : शिकवा या शिकायत
क्षा : क्षारता
अर्थात शिक्षक के द्वारा छात्रों के शिकवे शिकायतों का समाधान करते हुए उनकी क्षारता को दूर करना ही शिक्षा होता है ।
अध्यापक :
अ : ब्रह्मा , सृष्टि , अमृत , कीर्ति , कण्ठ ।
ध : धरा , धारण करने वाला
या : यात ( पाया हुआ )
प : परिपक्व होना , पढ़ाना
क : आत्मा , मन , शरीर , कमल , कर्मठ ।
ब्रह्मा द्वारा रचित इस सृष्टि में इस सुंदर और पवित्र धरा पर अपने इस सुंदर काल में सत्कर्म और सदाचार ( वह आचरण जिससे समाज की रक्षा हो , कल्याण हो और सुख शांति की वृद्धि हो ) को धारण करते हुए अपने आप में पाए हुए ज्ञान से परिपक्व होकर छात्रों के मन और आत्मा में भी अपने सुंदर कण्ठ से सत्कर्म और सदाचार रूपी अमृत का पान कराते हुए उसके कोमल मन और हृदय को कमल के समान पुष्पित करने हेतु अपने यश और कीर्ति को कायम रखते हुए पठन पाठन के पथ पर अग्रसर रहनेवाले पथिक ही अध्यापक कहलाते हैं ।
शिक्षक छात्रों के शिशुकाल से लेकर किशोरावस्था तक उनके अवगुणों को दूर करते हुए उनके चंचल मन मस्तिष्क में गुणों का समावेश करता है । अतः शिक्षक सदैव आदरणीय , सम्मानित और पूज्य होते हैं , क्योंकि शिक्षक आजीवन छात्रों को सर्वोत्तम शिक्षा देने के लिए तन मन से समर्पित रहता है ।
अतः समस्त शिक्षकगणों को कोटि कोटि प्रणाम है ।

शिक्षक है तो सुबह है ,
शिक्षक बिना शाम है ।
शिक्षक होते जहाॅं भी ,
शिक्षा आठों याम है ।।


अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।

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