
बड़ी देर तक आती रही
तेरी आवाज मेरे कान में
तुम खामोश थी फिर भी
कह गई कुछ मेरे कान में।
गुमनाम रूप प्रेम उसका
क्यों देखूं अब संसार को
वो हसरत उमर भर की
बस गई मेरे नाम में।।
नाम से अंजान मैं पूछता
वक्त क्या हुआ है
मेरे दिल को चुरा ले गई
वो मोहतरमा आराम से।।
हाथ से छू गया उसका दुपट्टा
ले रहा अब मेरी जान है
नई दिलचस्प सी वो नजर
मिलाना नहीं आसान है।।
कल तक यारों से घिरे थे
आज खुद से परेशान हैं
हैं लड़खते पाव मेरे
पर नशे में लग रहा जहान हैं।।
उसका चेहरा ही ,नहीं
मिलता जुलता किसी से
क्या हम कह दे अब
खामोश मेरी जुबान हैं।।
नीरज कुमार नीर इटारसी
द्वारा स्वरचित रचना