
विषय: “मानवीय स्वभाव मूल रूप से अच्छा है और आत्मज्ञान का प्रयास सभी बुराइयों को खत्म करने की शक्ति रखता है।”
— डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का यह विचार अत्यंत गहन एवं जीवनोपयोगी है कि “मानवीय स्वभाव मूल रूप से अच्छा है और आत्मज्ञान का प्रयास सभी बुराइयों को समाप्त करने की शक्ति रखता है।” वास्तव में भारत की महान परंपरा में यह विश्वास प्राचीन काल से ही रहा है कि प्रत्येक मनुष्य का हृदय पवित्र होता है और उसमें करुणा, प्रेम तथा सहयोग की भावना निहित रहती है।
किन्तु जीवन की परिस्थितियाँ एवं अज्ञान उस पवित्रता को ढक देते हैं। स्वार्थ, लोभ और बुराइयाँ मनुष्य के वास्तविक स्वरूप को छिपा देती हैं। जब मनुष्य आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है, तब वह अपनी अंतर्निहित अच्छाई को पहचानता है। आत्मज्ञान ही वह ज्योति है, जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर मनुष्य को उसकी सच्ची मानवता से परिचित कराती है।
आत्मज्ञान केवल पुस्तकीय ज्ञान से प्राप्त नहीं होता, अपितु गुरुजनों एवं सत्पुरुषों के मार्गदर्शन से संभव होता है। गुरु ही वह दीपक है, जो शिष्य के अंतर्मन को प्रकाशित करता है। वह केवल शिक्षा ही प्रदान नहीं करता, बल्कि जीवन का आदर्श प्रस्तुत करता है तथा हमें अपने भीतर की अच्छाई को समाज के कल्याण हेतु प्रयोग करने की प्रेरणा देता है।
आज के युग में जब समाज अनेक चुनौतियों और बुराइयों से घिरा हुआ है, तब आत्मज्ञान ही हमें सच्चे अर्थों में मार्गदर्शन कर सकता है। यह आत्मज्ञान हमें भीतर के भय और स्वार्थ से मुक्त कर प्रेम, करुणा और सदाचार की राह पर अग्रसर करता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रखर अध्येता थे। उनका मत था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और चरित्र निर्माण भी है। उनके अनुसार हर मनुष्य का स्वभाव मूलतः अच्छा होता है और उचित मार्गदर्शन मिलने पर वह समाज के लिए उपयोगी बन सकता है। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने सदैव यह प्रयास किया कि विद्यार्थी केवल पुस्तकों तक सीमित न रहें, बल्कि जीवन के वास्तविक मूल्यों को भी आत्मसात करें।
उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा प्रेरक पक्ष यह था कि वे स्वयं वही आदर्श जीते थे, जिन्हें वे अपने छात्रों को सिखाते थे। वे सरलता, विनम्रता और सत्यनिष्ठा के प्रतीक थे। विद्यार्थियों के साथ उनका व्यवहार केवल अध्यापक का नहीं, बल्कि मार्गदर्शक एवं मित्र का भी था। यही कारण है कि उनके सम्मान में प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वास्तव में, डॉ. राधाकृष्णन जी का जीवन इस सत्य का सजीव उदाहरण है कि आत्मज्ञान ही वह शक्ति है, जो सभी बुराइयों का नाश कर मानवता का मार्ग आलोकित कर सकती है।
शिक्षक दिवस का वास्तविक सार यही है कि हम यह स्मरण रखें कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर अच्छाई विद्यमान है और उसे जागृत करने की सामर्थ्य केवल आत्मज्ञान में निहित है। आत्मज्ञान ही वह दिव्य शक्ति है, जो जीवन को सही दिशा प्रदान कर समाज से अज्ञान और बुराइयों का नाश करती है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का यह संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन तक सीमित न रखें, बल्कि उसे आत्मविकास और मानवता की सेवा का साधन बनाएँ। अतः शिक्षक दिवस पर हम न केवल अपने गुरुजनों का सम्मान करें, बल्कि यह संकल्प भी ले कि उनके मार्गदर्शन को अपनाकर हम अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक बनाएँगे। यही हमारे लिए शिक्षक दिवस की सबसे बड़ी प्रेरणा है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
योगेश गहतोड़ी “यश”