Uncategorized
Trending

हे सनातन धर्मियों !! आओ !! पितृपक्ष में पितरों का सम्मान करें !! तर्पण और जल दान करें ।।

आज संवत 2082 भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तदनुसार 7 सितंबर 2025 खग्रास चंद्र ग्रहण एवं आज से ही पितृपक्ष आरम्भ होता है जो एक अनुपम एवं अद्भुत संयोग है —

।। तर्पण एवं श्राद्ध ।।

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की पूरे कृष्ण पक्ष अर्थात् अमावस्या तक पूरे 16 दिनों तक पूर्वज-पितरों का तर्पण किया जाता है ।।

ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज किसी न किसी रूप में परिजनों के भोजन व जल की इच्छा रखते हैं, अत: इन तिथियां पर उनका श्राद्ध कर्म करना आवश्यक हो जाता है ।।

आइए जानें कौन-सी तिथि को किसका श्राद्ध करने का महत्व है ।।

पूर्णिमा श्राद्ध–
पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त जातकों का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है ।। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं ।।

पहला श्राद्ध–
जिस भी व्यक्ति की मृत्यु प्रतिपदा तिथि {शुक्ल पक्ष/ कृष्ण पक्ष} के दिन होती है उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है। प्रतिपदा श्राद्ध पर नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो और मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा को किया जाता है ।।

दूसरा श्राद्ध–
द्वि‍तीया श्राद्ध में जिस भी व्यक्ति की मृत्यु द्वितीय तिथि {शुक्ल/कृष्ण पक्ष} के दिन होती है, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है ।।

तीसरा श्राद्ध–
जिस भी व्यक्ति की मृत्यु तृतीया तिथि के दिन होती है उनका श्राद्ध तृतीया के किया जाता है । इसे महाभरणी भी कहते हैं ।।

चौथा श्राद्ध–
शुक्ल/कृष्ण पक्ष दोनों में से किसी भी चतुर्थी तिथि को जिस भी व्यक्ति की मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध चतुर्थ तिथि के दिन किया जाता है ।।

पांचवां श्राद्ध–
जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। यह कुंवारों को समर्पित श्राद्ध है ।।
छठा श्राद्ध–
षष्ठी तिथि पर जिस भी व्यक्ति की मृत्यु इस दिन होती है उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है । इसे छठ श्राद्ध भी कहते हैं ।।

सातवां श्राद्ध–
शुक्ल या कृष्ण किसी भी पक्ष की सप्तमी तिथि को जिस भी व्यक्ति की मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है ।।

आठवां श्राद्ध–
यदि निधन पूर्णिमा तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या {पितृमोक्ष} अमावस्या को किया जा सकता है ।।

नवमी श्राद्ध–
यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि को न कर नवमी तिथि को करना चाहिए । नवमी के दिन श्राद्ध करने से जातक के सभी कष्ट दूर होते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि की जानकारी न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है ।।

दशमी श्राद्ध–
दशमी तिथि को जिस भी व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध महालय की दसवीं तिथि के इसी दिन किया जाता है ।।

एकादशी श्राद्ध–
एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है ।।

द्वादशी श्राद्ध–
जिनके पिता संन्यासी हो गए हो उनका श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाना चाहिए । यही कारण है कि इस तिथि को ‘संन्यासी श्राद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है ।।

त्रयोदशी श्राद्ध–
श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है ।।

चतुर्दशी श्राद्ध–
जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विषपान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए ।।

अमावस्या श्राद्ध–
सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है । इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है ।।
अतः सभी सनातन धर्मियों को श्रद्धा से 16 दिन तक तर्पण अवश्य करना चाहिए । वैसे तो 365 दिन तर्पण करने का विधान है लेकिन फिर भी यह 16 दिन अवश्य तर्पण करें, श्राद्ध करें, और पितरों से भरपूर आशीष पायें सुखी रहे ।।

सम्पादन — पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर हरिद्वार
हरिकृपा ।।
मंगल कामना ।।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *