
ख़ामोशियों के बीच दिल का दर्द सुनाई देता है,
हर तन्हा रात में तेरा चेहरा दिखाई देता है।
पंख फैलाकर उड़ जाना चाहता हूँ चुपके से,
ये शहर-ए-दर्द अब लौटकर अच्छा न दिखाई देता है।
तेरी बेवफ़ाई का ज़हर अब और सहा नहीं जाता,
हर लम्हा तन्हाई में तेरा ग़म समाई देता है।
भूलना चाहता हूँ इश्क़ की हर एक निशानी,
पर तेरी याद का गुलशन मुझे बुलाई देता है।
ज़ेहन से मिटाना चाहता हूँ तेरा चेहरा मगर,
हर साँस के आईने में तू ही दिखाई देता है।
अकेलेपन में तन्हाई और गहरी चुभ जाती है,
ग़म की साज़िश में ख़ुदा भी परखाई देता है।
अब तो ऐ बेवफ़ा, तू जा कहीं और, दूर जा,
तेरा बार-बार आना भी बोझ सा लगाई देता है।
आर एस लॉस्टम