
बुलबुले को देखकर इंसान
करता है गहन चिंतन,
” यह कैसा जीवन?
पूरा होने से पहले ही
टूट जाए सपन? “
कितना है नादान
ये इंसान!!!!
बुलबुले सा ही तो हर प्राण,
अपनी इच्छा से ही
चलाते हैं करुणा निधान।
फिर भी स्वप्न सजाता है,
कविता सम जीवन बनाता है!!!
बहुत कुछ सोचता है,
कर कुछ नहीं पाता है।
सुलेखा चटर्जी