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अस्तित्व की जंग

अस्तित्व पर जब आंच आए,
दूसरे को ना कभी मौका देना।
लड़ जाना अधिकार के लिए…
बस हौसलों से काम लेना।

सवाल भूख का नहीं अधिकार का है।
सबल का निर्बल के प्रति अत्याचार का है।
कमजोर का हक छीनना रहा सदैव…
मकसद ताकतवर के मनोविकार का है।

हो अगर सत्य साथ में तो,
खुद को कमजोर मत समझना।
लड़ाई स्वाभिमान की हो यदि…
भूलकर भी ना कभी पीछे हटना।

भला कमजोर ही क्यों सहें प्रताड़ना।
बुलंद कर आवाज ना किसी से डरना।
भरना आत्म बल से हुंकार…
अपनी ना कभी मर्यादा को लांघना।

उर्मिला ढौंडियाल ‘उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड)

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