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समाधि पाद


सूत्र– १०
अभावप्रत्ययाऽलम्बना वृत्तिर्निद्रा ।

अभावप्रत्ययाऽलम्बना= अभाव के ज्ञान का अवलम्बन {ग्रहण} करने वाली; वृत्ति:= वृत्ति; निद्रा= निद्रा है ।

अनुवाद– अभाव के ज्ञान का अवलम्बन करने वाली {ग्रहण करने वाली} ‘वृत्ति’ निद्रा है ।
व्याख्या– ‘निद्रा’ भी चित्र की वृत्ति है । इसमें मनुष्य को किसी भी विषय का ज्ञान नहीं रहता किंतु ज्ञान के अभाव में अभाव की प्रतीति होती है । जैसे गहरी निद्रा में भी मनुष्य को यह भान रहता है कि आज नींद गहरी आई । इस बहन के कारण ही इसे वृत्ति कहा गया है । जब निद्रा से जागने पर आनन्द की अनुभूति हो, आलस्य न रहे, इंद्रियाँ स्वस्थ एवं प्रसन्न हो जायें तो इसे अक्लिष्ट {विद्या} कहते हैं किंतु जैन पर यदि केवल थकान का अभाव हो जाए और उसे आसक्ति उत्पन्न हो जाए तो वह क्लिष्ट {अविद्या} कहलाती है । समाधि और गहरी निद्रा करीब-करीब समान ही है । समाधि में सजगता बनी रहती है किंतु गहरी निद्रा में सजगता नहीं होती । यदि इसमें सजगता रहे तो इसी को समाधि कहते हैं ।
स्रोत– पतंजलि योग सूत्र
लेख व प्रेषण– पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर हरिद्वार

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