
रोको कोई आगे बढ़कर मानव के छल को
देवभूमि क्यों उजड़ रही हर अगले पल को।।
कल तक जहां प्रकृति की हरियाली मुस्काती थी
सारी भूमि आज प्रकृति के कहर सेदिखती काली थी
हर गली वीरान ढूंढती घर के संबल को।
देवभूमि क्यों उजड़ रही हर अगले पल को।।
गंगा की पावन गोद जहां जमुना जी की शांति है ,
आज उसी जलधारा मे दिखती बहुत अशांति है
ढूंढ रही अब प्रकृति वहां के निर्मल जल को
देवभूमि क्यों उजड़ रही हर अगले पल को।।
क्यों टूटते पहाड़ अचानक धरती को कंपा जाते,
प्रश्न सैकड़ो उठते मन में उत्तर ना हम दे पाते
मिटा दिया क्यों हमने उसके कोमल तल को,
देवभूमि क्यों उजड़ रही हर अगले पल को।।
काटे पेड़ रोक दी नदियां वक्ष स्थल छलनी कर डाला,
घाव दिखा ना जब उसका तो रौद्र रुप उसने ले डाला,
अब ना करना आगे से किसी बड़ी भूल को।।
देवभूमि क्यों उजड़ रही हर अगले पल को।।
प्रकृति हमारी माता है यह सबको मानना होगा
बद्रीनाथ केदार धाम में तभी पहुंचना संभव होगा
तभी सुरक्षित रख पाएंगे इस पावन स्थल को।।
देवभूमि क्यों उजड़ रही हर अगले पल को।।
शपथ आज सब मिलकर लेवे, धरती को न सताएंगे
कदम कदम पर वृक्ष लगाकर धरती को सजाएंगे,
तभी सुरक्षित कर पाएंगे आने वाले
कल को
देवभूमि क्यों उजड़ करही हर अगले पल को।।
स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित
पुष्पा पाठक छतरपुर मध्य प्रदेश