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एक गुरु कई रूप

सिर्फ ज्ञान ही नहीं जो…
जीवन की सच्चाई बतलाए।
ऐसे गुरुदेव के चरणों में,
नमन और शीश झुकाएं।।

प्रथम गुरु जननी अपनी…
जो प्रथम अक्षर बोध कराए।
अबोध बालक की मनोदशा को
बड़ी सहजता से समझ जाए।।

शिक्षक भी बड़ी सहजता से
शिष्य का मन पढ़ लेते हैं।
ज्ञानदीप की ज्योति जलाकर
हृदय के तम को हर लेते हैं।।

कोमल आलिंगन मां सा कभी…
कठोर अनुशासन पिता सा रखते हैं।
देकर नैतिक मूल्यों की शिक्षा…
उनमें संस्कार गढ़ लेते हैं।।

गुरु के रूप अनेकों,
अनेकों भूमिका निभाते हैं।
भाई बंधु सखा बन हर रूप में
शिष्य का भविष्य संवारते हैं।।

देते ज्ञान जीवन मूल्यों का
अच्छाई बुराई में भेद बतलाते हैं।
कर्तव्य परायणता का पाठ,
पढ़ाकर शिष्टाचार सीखाते हैं।।

स्वरचित एवं मौलिक :-
उर्मिला ढौंडियाल ‘उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड)

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